
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है जो कि भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 10.4% है परन्तु जल संसाधन 1% ही है।
हमारे देश में 70 प्रतिशत खेती वर्षा पर आधारित है।
कुल खाद्यान्न उत्पादन का 44 प्रतिशत इन्हीं क्षेत्रों से आता है ।
राजस्थान का 75 प्रतिशत क्षेत्रफल वर्षा आधारित या बारानी है।
परिभाषा – ‘शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में जहां वाष्पीकरण की मात्रा, वर्षण (वर्षा, ओस, बर्फ) से प्राप्त जल की मात्रा से अधिक हो, जहाँ सिंचाई उपलब्ध न हो, में नमी संरक्षण व समुचित सस्य E द्वारा फसल उत्पादन करना शुष्क खेती है”
अथवा ऐसे क्षेत्र जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 750mm से कम होती है, वहाँ शुष्क खेती अपनाई जाती है।
Dry Land Farming-ऐसे क्षेत्रों में फसलों की खेती के लिए औसत वार्षिक वर्षा 750mm से अधिक व 1150mm से कम होती है, वहाँ Dry Land Farming अपनाई जाती है।
Rain Fed Farming-ऐसे क्षेत्रों में फसलों की खेती के लिए औसत वार्षिक वर्षा 1150mm से अधिक होती है, वहाँ, Rain Fed Farming अपनाई जाती है।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, असिंचित खेती से तात्पर्य बिना सिंचाई के फसलोत्पादन से है, यह प्रायः आर्द अर्द्ध आई जलवायु क्षेत्रों में की जाती है। इन क्षेत्रों में वर्षा अधिक व वाष्पीकरण कम होता है।
भारत में योजना आयोग के अनुसार 15 सस्य जलवायवीय खण्ड है तथा ICAR के अनुसार भारत में 131 सस्य जलवायवीय खण्ड है ।
भारत में सस्य पारिस्थितिकी जोन (Agro-ecological Zonc ) 20 है।
ICAR-नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परियोजनाओं के लिए राजस्थान को 10 कृषि जलवायवीय खण्डों (Agro Climatic Zones) में बाटाँ गया है।
राजस्थान के परिपेक्ष्य में शुष्क कृषि का महत्त्व
राज्य के पश्चिम भाग में औसतन वर्षा 100 से 300mm तथा पूर्वी भाग में 500 से 1000mm होती है। राज्य की औसत वर्षा 575.1mm है। राजस्थान में कुल वार्षिक वर्षा का 90 प्रतिशत से अधिक भाग मध्य जून से मध्य सितम्बर तक प्राप्त होता है।
मानसून काल मात्र 40 से 80 दिन तक रहता है।
शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में तापक्रम मई-जून शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में तापक्रम मई- में 40 से 50°C तथा जनवरी में 1 से 2°C हो जाता है ।
वायुमण्डल में औसत आपेक्षिक आर्द्रता 25-40% (अक्टूबर से मध्य जून तक ) रहती है।
मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा 1% से भी कम पाई जाती वाष्पोत्सर्जन हानि कम करने वाष्पोत्सर्जन रोधी रसायनों का फसलों पर छिड़काव करते है जो पत्तियों के पर्णरन्ध्र बन्द करके वाष्पोत्सर्जन को रोकने में मदद करते है। उदाहरण- एस्प्रिन, PMA (Phenylmercuric Acetate), ABA (Abscisic Acid).
शुष्क खेती के लिए फसलों की किस्म
बाजरा | HHB-67, RHB-177, ICMH-356, RHB-30, RHB-67, MH-179, |
ज्वार | CSH-1, 5, 6, CSH-14, SPV-96 |
गेहूँ | D-134, मुक्ता, लोक – 1, जोब – 666, राज-3077 |
जो | RD-31, RD-2552 |
चना | RSG -2, दोहद यलो, BJ-256, C-235 |
सरसों | वरूणा (T-59), RH-30, पूसा बोल्ड, दुर्गामणी, अरावली, बायो- 902 |
मूंग | पूसा बैसाखी, K-851, SML-668, RMG-62 |
मोठ | RMO-40, 257जड़िया, ज्वाला, IPCMO – 880 |
तिल | RT-127, RT-46, TC-25 |
मूंगफ | JL-24, GG-2,AK-12-24, |
मक्का | संकुल अगेती – 76, D-765 |
चवलां | RC-19, C-152, FS-68 |
सोयाबीन | JS-335, NRC-37 |
अरहर | प्रभात, T-21, ICPH-8, UPAS-120 |
शुष्क भूमि में अंकुरण की समस्या होने से बीज दर सामान्य से 10-15 प्रतिशत अधिक रखनी चाहिए। जबकि पौधों की संख्या सिंचित क्षेत्रों की तुलना में 15-20 प्रतिशत कम रखी NZXT e
परिभाषा – ” “एक ही ऋतु में एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलों को उगाना मिश्रित फसल कहलाता है” ।
मिश्रित फसल विपरित मौसम के प्रति एक प्रकार का बीमा है।
सिन्धु घाटी की सभ्यता के प्रमुख स्थल कालीबंगा (हनुमानगढ़) से प्राप्त जुताई की कूड़ों से पता चला है कि उस समय कई फसलों को एक साथ मिलाकर खेती की जाती थी ।
मोहनजोदड़ों में गेहूँ, जौ, चना की फसलों की खेती एक साथ मिलाकर करने के प्रमाण मिले है ।
मिश्रित फसलों के प्रकार (Types of Mixed Cropping)
(i) मिश्चित फसलें (Mixed Crops)
इस प्रकार के मिश्रण में फसलों की बुवाई व कटाई का समय एक सा रहता है।
बुवाई से पूर्व सभी बीजों को मिलाकर छिटकवाँ या पंक्तियों में बुवाई कर देते है। उदाहरण-चना + गेहूँ+सरसों, चना, मक्का + सोयाबीन ।
(ii) सहचर फसलें (Companion Crops )
इस प्रकार के मिश्रण में फसलों के बीजों को मिलाकर नहीं बोते, बल्कि अलग-अलग पंक्तियों में बोते हैं। जैसे – अरहर की दो पंक्तियों के बीच ज्वार की दो पंक्तियाँ बोना ।
(iii) रक्षक फसलें (Guard Crops )
मुख्य फसल की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर 10-15 पंक्तियाँ गौण फसल की बोयी जाती है। जैसे- गन्ने की फसल के चारों ओर अरहर बोते है । ACHK
(iv) सहायक अथवा वृद्धि कारक फसलें (Augmenting DA Crops)
इस प्रकार के मिश्रण में मुख्य फसल की उपज बढ़ाने के लिए अन्य गौण फसलें मिला दी जाती है। जैसे- बरसीम के साथ सरसों मिलाकर बौने से चारों की उपज बढ़ जाती है।
फसल चक्र/सस्यावर्तन (Crop Rotation)
परिभाषा – ” किसी निश्चित क्षेत्र में, निश्चित अवधि में फसलों को हेर-फेर कर इस प्रकार से बोना, कि फसलों से अधिकतम पैदावार प्राप्त प्राप्त हो सके और भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट न हो, सस्यावर्तन (फसल चक्र ) कहलाता है ।
फसल चक्र का मुख्य उद्देश्य भूमि की उर्वरा शक्ति के ह्रास को रोकना है।
लवणीय मृदाओं में सनई, बेंचा, कपास, सरसों, चुकन्दर जैसी लवणीय सहनशील फसलें फसल चक्र में शामिल करनी चाहिए।
फसल चक्र 1-4 वर्ष का हो सकता है।
फसल सघनता= कुल फसली क्षेत्र X 100/शुद्ध बोया गया क्षेत्र
फसल चक्र सघनता = फसल चक्र में फसलों की संख्या/वर्षों की संख्या X 100